भारत का पोस्टल सिस्टम दुनिया का सबसे बड़ा और सुचारु रूप से संचालित पोस्टल सिस्टम माना जाता है। भारतीय पोस्टल सिस्टम सुचना मंत्रालय के अन्तर्गत आता है। भारतीय पोस्टल सिस्टम 1 लाख 50 हजार पोस्ट ऑफिस तथा 4 लाख 30 हजार कर्मचारियों से मिलकर बना है। जिसमे से 90 फीसदी से ज्यादा पोस्ट ऑफिस ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। यह सोचने वाली बात है की इतने सारे पोस्ट ऑफिस, रोज़ाना लाखों डाक एवं पार्सल उनपर लिखे पते पर पहुचाये जाते हैं, आखिर यह कैसे होता होता है ? कैसे कर्मचारी इन डाक और पारसलों को अलग करके उन्हें निर्धारित पतों पर पहुंचने की उलझन भरी प्रक्रिया को इतनी आसानी से पूरा कर लेते हैं। इसका जवाब है पिन कोड। जी हाँ, 6 अंको का बना पिन कोड इस काम को बहुत आसान कर देता है।
Postal Index Number को संक्षेप में पिन कोड कहा जाता है। यह एक 6 अंक का नंबर होता है। भारत में लाखों पोस्ट ऑफिस है और हर पोस्ट ऑफिस का अपना एक अलग पिन कोड होता है। हर डाकघर का अपना एक अलग पिन कोड होने से ये सुनिश्चित होता है की हर डाक उसके निर्धारित डाक घर में ही पहुंचे।
6 अंको का बना पिन कोड अपने एरिया की पूरी जानकारी देता है। पिन कोड का पहला अंक पोस्टल ज़ोन दर्शाता है जोकि 1-9 के बीच में होता है। दूसरा अंक सब-ज़ोन यानी की राज्य या केंद्र शासित प्रदेश एवं तीसरा अंक राज्य दर्शाता है। चौथा अंक क्षेत्रीय मार्ग की जानकारी देता है, जहाँ पोस्ट ऑफिस स्थित होता है। आखिरी दो अंक उस विशेष पोस्ट ऑफिस का पता बताते हैं जहाँ डाक पहुंचना होता है।
श्रीराम भीकाजी वालेनकर को पिन कोड का जनक माना जाता है। भारत में पिन कोड का इस्तिमाल 15 अगस्त 1972 में चिठियों की छंटाई एवं तेजी से वितरण के उद्देश्य से शुरू किया गया था। श्रीराम भीकाजी वालेनकर उस समय केंद्रीय संचार मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव पद पर कार्यरत थे। पिन कोड की नई प्रणाली के आ जाने से चिठियों को छांटने में तथा समय से उस पर लिखे पते पर पहुंचना पहले से बहुत आसान हो गया था।
• पिन कोड की मदद से डाक और पार्सल को छांटना आसान हो जाता है।
• पिन कोड की मदद से डाक उसकी मंजिल पर पहुंचना आसान हो जाता है।
• पिन कोड की मदद से मिलते जुलते जगहों के नाम क़े कारण भ्रम की स्तिथि नहीं आती क्यूंकि हर जगह का एक अलग पिन कोड होता है।